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कृषि में स्वरोजगार की अपार सम्भावनाएं- एन.ए. राजा
संस्कृति विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सीखे उद्यमिता के गुर
मथुरा। आज भारत ही नहीं विश्व का प्रायः हर देश बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। इस समस्या का निदान युवाओं के हाथ है। युवा पीढ़ी नौकरी के पीछे भागने की बजाय यदि उद्यमिता को आत्मसात कर ले तो बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्ति पाई जा सकती है। उद्यमिता जियो और जीने दो की नीति पर चलती है। एक उद्यमी नई सोच और नए विचार लेकर व्यवसाय में प्रवेश कर न केवल अपना भला करता है बल्कि अन्य लोगों को भी अपने कार्य से जोड़कर उन्हें भी रोजगार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि के क्षेत्र में भी स्वरोजगार की अपार सम्भावनाएं हैं उक्त विचार एम.एस.एम.ई. आगरा सेण्टर के उप-निदेशक एन.ए. राजा ने संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय इंटरप्रेन्योरशिप अवेयरनेस कैम्प के शुभारम्भ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। कैम्प का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया।
इस अवसर पर सिंडीकेट बैंक के सीनियर काउंसलर अमित चतुर्वेदी ने एग्रीकल्चर के छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश के आर्थिक विकास में कृषि का अहम योगदान है। हम इसमें उद्यमिता का समावेश कर देश की तरक्की को चार चांद लगा सकते हैं। उद्यमिता में मानवीय संसाधन का सही और पूर्ण उपयोग करने की क्षमता है। मानवीय संसाधन राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है किन्तु अगर इसका सही उपयोग नहीं हुआ तो यह देश और समाज के लिए एक बहुत बड़ा बोझ बन जाता है। उद्यमिता लोगों में साहसी होने की भावना जगाती है। जो व्यक्ति जोखिम उठाता है वही सफलता के प्रतिमान भी गढ़ता है।
इंटरप्रेन्योरशिप अवेयरनेस कैम्प के दूसरे सत्र में एन.एन. सक्सेना ने कहा कि उद्यमिता का आशय उस कौशल, दृष्टिकोण, चिन्तन, तकनीक एवं कार्यप्रणाली से है, जिसके द्वारा व्यवसाय में निहित अनेक प्रकार के जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना किया जाता है एवं व्यवसाय को संचालित किया जाता है। उद्यमिता व्यावसायिक अवसर को पहचानने, जोखिम के प्रबन्धन, सम्प्रेषणीय एवं प्रबन्ध कौशल के माध्यम से मानवीय, वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों को गतिशील बनाने के लिए आवश्यक है। हम आर्थिक विकास के लिए कृषि के क्षेत्र में भी सफल इकाई की स्थापना कर उपलब्ध संसाधनों के सर्वोतम उपयोग द्वारा आत्मनिर्भर बन सकते हैं। श्री सक्सेना ने कई उदाहरणों के द्वारा छात्र-छात्राओं को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि एक सफल उद्यमी में नवप्रवर्तन की प्रवृत्ति, अवसर की तलाश तथा उसके सुचारु संचालन की क्षमता होनी चाहिए। यदि वह सही समय पर उचित पहल नहीं करेगा तो अवसर हाथ से निकल जायेगा। एक उद्यमी प्रवर्तक भी कहलाता है क्योंकि वह भी आवश्यक कोष एवं मानव संसाधन जुटाता है, जोखिम वहन करता है तथा प्रस्तावित व्यवसाय को एक स्वरूप प्रदान करता है। कुलपति डा. देवेन्द्र पाठक, एसोसिएट डीन एकेडमिक डा. संजीव कुमार सिंह और निर्मल कुण्डू ने अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंटकर पुनः आने का आग्रह किया। डा. रीना रानी, अमन चौधरी और विंसेंट बालू ने पुष्पगुच्छ भेंटकर अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर प्राध्यापक डा. आर.के. शर्मा, गौरव कुमार, कृष्णराज, रेनू सेन आदि उपस्थित थे।