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छात्र में रचनात्मक अभिव्यक्ति जगाना शिक्षक का दायित्वः सतीश कौशिक
संस्कृति यूनिवर्सिटी में हुई शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर कार्यशाला
दो दर्जन से अधिक विद्यालयों के शिक्षकों ने की सहभागिता

संस्कृति यूनिवर्सिटी में हुई शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर कार्यशाला

मथुरा। हर छात्र की अलग-अलग परेशानी होती है। शिक्षक से बेहतर विद्यार्थियों की मनोदशा को कोई और नहीं पढ़ सकता लिहाजा एक कुशल शिक्षक ही छात्र में रचनात्मक अभिव्यक्ति जगा सकता है। इंसान शारीरिक व्याधियों से तो दवा लेने के बाद ठीक हो जाता है लेकिन मन की चोट लम्बे समय तक रहती है। एक शिक्षक को न केवल छात्र-छात्राओं की मनोदशा को समझना चाहिए बल्कि उसके शीघ्र निदान की कोशिश भी करनी चाहिए। उक्त उद्गार संस्कृति यूनिवर्सिटी और बेंगलूरु की एक्सलरेटर संस्था द्वारा शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य वक्ता राजबाला फाउण्डेशन के प्रमुख सतीश कौशिक ने व्यक्त किए। इस कार्यशाला में दो दर्जन से अधिक विद्यालयों के शिक्षकों ने सहभागिता की। कार्यशाला का शुभारम्भ कुलपति डा. राणा सिंह, ओएसडी मीनाक्षी शर्मा, मनोवैज्ञानिक सतीश कौशिक, एक्सलरेटर संस्था उत्तर भारत के मार्केटिंग हेड सौरभ तिवारी, अनुभव सक्सेना आदि ने मां सरस्वती की पूजा-अर्चना और दीप प्रज्वलित कर किया।

Teacher Development workshop at Sanskriti University

इस अवसर पर मुख्य वक्ता श्री कौशिक ने कहा कि छात्र-छात्राओं में रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में प्रसन्नता जगाना शिक्षक की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रौद्योगिकी सिर्फ एक उपकरण है, बच्चों को एक साथ काम करने और प्रेरित करने के लिए शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, क्योंकि स्टूडेंट की मनोदशा का ज्ञान उसे ही होता है। कुलपति डा. राणा सिंह ने कहा कि एक किताब, एक कलम, एक बच्चा और एक शिक्षक पूरी दुनिया बदल सकता है। हमारे समाज के निर्माण में अध्यापक की एक अहम भूमिका होती है क्योंकि समाज उन्हीं बच्चों से बनता है जिनकी शिक्षा का जिम्मा एक अध्यापक पर होता है। शिक्षक ही है जो उसे समाज में एक अच्छा नागरिक बनाने के साथ उसका सर्वोत्तम मानसिक विकास भी करता है। शिक्षा देने के साथ ही वह उसे एक पेशेवर व्यक्ति बनने और एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है। ओएसडी मीनाक्षी शर्मा ने कहा कि एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है, एक अच्छा शिक्षक समझाता है, एक बेहतर शिक्षक करके दिखाता है जबकि एक महान शिक्षक छात्र को प्रेरित करता है कि उसे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। देश में मौजूद सभी सफल व्यक्तियों के पीछे एक गुरु की भूमिका ही होती है। एक बच्चे को मार्गदर्शन देने के साथ गुरु उसके व्यक्तित्व से भलीभांति परिचित कराता है, उसके अंदर छिपे समस्त गुणों को बाहर लाता है। सच कहें तो शिक्षक भगवान का ही दूसरा रूप है।

एक्सलरेटर संस्था उत्तर भारत के मार्केटिंग हेड सौरभ तिवारी ने कहा कि एक अध्यापक का उत्तरदायित्व बनता है कि वह अपने छात्र-छात्राओं को सही शिक्षा, प्रेरणा, सहनशीलता, व्यवहार में परिवर्तन तथा मार्गदर्शक प्रदान करे तथा उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के साथ ही उन्हें एक बेहतर इंसान बनाए। एक आदर्श अध्यापक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। वही छात्रों को समय का सदुपयोग भलीभांति करना सिखाता है। अनुभव सक्सेना ने कहा कि जो शिक्षक अपने स्टूडेंट को समय का भान कराते हुए अपनी योजनानुसार ज्ञान प्रदान करते हैं, वही कुशल शिक्षक हैं। एक आदर्श अध्यापक में नम्रता और श्रद्धा का भाव होना भी आवश्यक है। बच्चों का हृदय बेहद कोमल होता है। बच्चे आस-पास के वातावरण से ही सीखते हैं, इसलिए वे इस बात पर बेहद गौर करते हैं कि उनके गुरु का हाव-भाव क्या है, बोलने का लहजा क्या है। अध्यापक को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे बच्चे उनसे प्यार करें। एक अनुशासित अध्यापक ही छात्रों का अच्छा मार्गदर्शक होता है। बच्चे इस संसार का वे फूल हैं जिनकी सुगंध से सारा संसार सुगन्धित होता है। इस कार्यशाला में भक्ति वेदांता स्कूल, के.एम.पी.एस. स्कूल, चंदवन पब्लिक स्कूल, माउण्टहिल एकेडमी, वत्सल्या पब्लिक स्कूल, एम.डी. जैन पब्लिक स्कूल, एस.आर.बी.एस. इंटरनेशनल स्कूल, मैनपुरी के सी.आर.बी. स्कूल आदि के शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित रहे। आभार एडमीशन हेड विजय सक्सेना ने माना।

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